आशियाना
इसी दुनिया में कभी मैं भी ख़ुशनसीब था
इक छोटा सा था अपना भी आशियाना,
ख़ुश रहते थे बाते करते थे अपनो के संग में रहते थे सुन्दर था अपना भी आशियाना,
लगा इश्क़ का रोग हुए बदनसीब टूटा छोटा सा आशियाना हुये अपनो से बेगाना,
होकर बेगाना चल दिये अनजान सफ़र में पर भुले नहीं अपना छोटा सा आशियाना,
चल दिया अनजानी सफ़र में गुमनाम थी राहें ना कोई नाम था ना अपनी मंज़िल,
जाये किधर किससे मिले किसको कहे छूटा अपनो का साथ टूटा मेरा आशियाना,
दिल की बातें दिल से ही करते राहों में चलते-चलते भटक गये अपने सफ़र से,
राहें जो जो भटका दिल मेरा धड़का आँखो में नज़र आया इक टूटा हुआ आशियाना,
टूटे आशियाने की यादों में मेरा दिल भी टूटने लगा अपनो का साथ छूटने लगा,
अपनो की याद में आँखों से आँसू बहने लगे बहते आँसू में देखा टूटा हुआ आशियाना,