“आशिक तेरा मैख़ाने में”
कल ही मिला था,आशिक तेरा मैख़ाने में।
छलका रहा था गम,भर-भर के पैमाने में।।
था दीवाना अपनी,आशिकी के नशे में चूर।
हर ख़ुशी से बेगाना,अपने ही शहर से दूर।।
था बहुत मजबूर, जैसे लूटा हो आजमाने में।।
कल ही मिला था,…………….।।
हालत थी उसकी जैसे,सदियों से खाया नही।
होकर खड़ा गिर जाता, जैसे पैर पाया नही।।
खुद को बिखरा चुका था,दूजे को सँवारने में।।
कल ही मिला था,…………….।।
कर रहे थे हाथ उसके,घुँघरू बाँध के मुज़रा।
देख मुझे शायद, याद का कोई दौर गुज़रा ।।
आँखों में आँसू,जैसे मदिरा भरी हो पैमाने में।।
कल ही मिला था,……………..।।
हर कसक दिल की, अदाएँ लग रही थी।
हर पल,दौर,महफ़िल गमों की सज रही थी।।
ऐ मोहब्बत न तड़पा,क्या मजा है तड़पाने में।
कल ही मिला था ,…………….।।
रचियता
सन्तोष बरमैया”जय”