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18 Mar 2018 · 1 min read

आशिक-ए-इजहार

गजल
………………………..

देखकर जिसने जहाँ में प्यार को इंनकार की,
कद्र क्या समझेगा जालिम आज अपने यार की
…….
इस जहां से उस जहां तक प्यार हीं ईमान था
लेके दौलत यार ने क्यो प्यार को बेजार की
………
हाथ में दौलत लिये था आंखों में वहशीपना
इश्क का सौदा किया हो मिल्कियत बाजार की
…….
इश्क करते है अकेले फिर करें गुमराह वो
बात जो माने ना दिलवर नौबत ए तकरार की
……
इश्क का ना कोई मजहब ना कोइ संसार है
इश्क तो बश है इबादत आशीक ए इजहार की!!

स्वरचित…
संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा, पश्चिमी चम्पारण
बिहार…८४५४५५

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