आशिक-ए-इजहार
गजल
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देखकर जिसने जहाँ में प्यार को इंनकार की,
कद्र क्या समझेगा जालिम आज अपने यार की
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इस जहां से उस जहां तक प्यार हीं ईमान था
लेके दौलत यार ने क्यो प्यार को बेजार की
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हाथ में दौलत लिये था आंखों में वहशीपना
इश्क का सौदा किया हो मिल्कियत बाजार की
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इश्क करते है अकेले फिर करें गुमराह वो
बात जो माने ना दिलवर नौबत ए तकरार की
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इश्क का ना कोई मजहब ना कोइ संसार है
इश्क तो बश है इबादत आशीक ए इजहार की!!
स्वरचित…
संजीव शुक्ल “सचिन”
मुसहरवा, पश्चिमी चम्पारण
बिहार…८४५४५५