आशा के दीप जलाते हैं योगी
योगी को भोग का रोग नहीं,
नित योग का भोग लगाते हैं योगी।
जनहित में निशिवासर धाय के,
जनता का धीर बढ़ाते हैं योगी ।
प्रदेश के लोग हताश न हों,
नित आशा के दीप जलाते हैं योगी ।
कोविड संकट में अनुशासन,
पाठ पे पाठ पढ़ाते हैं योगी ।
बिमारी से जूझ रहे देवदूत में,
उत्साह की ज्योति जलाते हैं योगी ।
भौतिक दूरी बनाए रख़े हम,
याचक बन समझाते हैं योगी ।
नेह – सनेह बढ़े चहुँ ओर,
यही समभाव जगाते हैं योगी ।
तन औ मन में शुचिता ही बसे,
सन्यासी का जीवन बिताते हैं योगी ।
बन्दी में भूखा न सोए गरीब,
खातों में राशी डलाते हैं योगी ।
कर्म के वीरों को जनता का हीरो
बताते, बताते, बताते हैं योगी।।
स्वर्ण सुई न गई यमलोक,
चरित्र ‘धवल’ दिखलाते हैं योगी ।
रचना-प्रदीप तिवारी धवल