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20 Feb 2024 · 1 min read

आशा का सवेरा

निराशाओं के भंवर से ही
भोर का उजियारा जनमता,
लहरों से लड़कर ही
हर मौज को किनारा है मिलता,
प्रकृति के कण-कण में बिखरे हैं,
खुशियों के धवल मोती, मगर
हौसलों के स्वेद से सिंचित,
हक़ीक़त की नर्म काया को
तपाना पड़ता है श्रम की भट्टी में,
तब कहीं नैराश्य के घने अंधकार से
होता है नई आशाओं का सवेरा….

Language: Hindi
71 Views
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