आशा का सवेरा
निराशाओं के भंवर से ही
भोर का उजियारा जनमता,
लहरों से लड़कर ही
हर मौज को किनारा है मिलता,
प्रकृति के कण-कण में बिखरे हैं,
खुशियों के धवल मोती, मगर
हौसलों के स्वेद से सिंचित,
हक़ीक़त की नर्म काया को
तपाना पड़ता है श्रम की भट्टी में,
तब कहीं नैराश्य के घने अंधकार से
होता है नई आशाओं का सवेरा….