आशा और निराशा
जीवन के हर क्षण में होती ,आशा और निराशा है।
हँसते रहना आगे बढ़ना जीवन की परिभाषा है।
जीवन के हर क्षण में होती, आशा और निराशा है।
जिसने जीवन को जीना सीखा ,बस उसको ही चैन मिला।
जो विपत्ति से नही लड़ा, वो ही हर पल बेचैन मिला।
गर संकल्पित हो आगे बढ़ें , तो मिलती नही हतासा है।
जीवन के हर क्षण में होती, आशा और निराशा है।
कर्म पथिक बन चलते जाएं ,तो जीवन का काम बने।
सूर्य उदित हो नवगति से ,तो सुबह बने और शाम बने।
कर्मठ होकर निज काम करें ,तो हर एक पल नया सा है।
जीवन के हर क्षण में होती ,आशा और निराशा है।
-सिद्धार्थ पाण्डेय