आशाओं की पौध रोपी
आशाओं की पौध रोपी
निकला जिससे एक अंकुर
हरा भरा हो पुष्प बना
लहराता बगिया के बीच
मन मेरा उपवन हो जाता
पंछी बन आसमां उड़़ जाता
इच्छा अनिच्छाओं में पल
नित दिवा स्वप्न को देख
बढ़ा जा रहा पग पर पग
वक्त भी करने लगा है छल
सोच कर मन बंजर हो जाता
पंछी बन आसमां उड़़ जाता
गली कूचे सड़के गंदे पड़े है
स्मार्ट सिटी के स्वप्न सजे है
कागजों में है साफ सुथड़े
वास्तविकता है मेले कुचैले
देख यह दिल बैठ जाता है
पंछी बन आसमां उड़़ जाता
उत्थान हेतु आवाजें उठी है
सुधार हेतु सत्ता भी अड़ी है
टाँग खिचाई भी है जबरदस्त
करनी है अक्लें भी दुरुस्त
संभावित भय जा छिप जाता
पंछी बन आसमां उड़़ जाता