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5 Oct 2021 · 1 min read

आशाओं की पौध रोपी

आशाओं की पौध रोपी
निकला जिससे एक अंकुर
हरा भरा हो पुष्प बना
लहराता बगिया के बीच
मन मेरा उपवन हो जाता
पंछी बन आसमां उड़़ जाता

इच्छा अनिच्छाओं में पल
नित दिवा स्वप्न को देख
बढ़ा जा रहा पग पर पग
वक्त भी करने लगा है छल
सोच कर मन बंजर हो जाता
पंछी बन आसमां उड़़ जाता

गली कूचे सड़के गंदे पड़े है
स्मार्ट सिटी के स्वप्न सजे है
कागजों में है साफ सुथड़े
वास्तविकता है मेले कुचैले
देख यह दिल बैठ जाता है
पंछी बन आसमां उड़़ जाता

उत्थान हेतु आवाजें उठी है
सुधार हेतु सत्ता भी अड़ी है
टाँग खिचाई भी है जबरदस्त
करनी है अक्लें भी दुरुस्त
संभावित भय जा छिप जाता
पंछी बन आसमां उड़़ जाता

Language: Hindi
80 Likes · 2 Comments · 437 Views
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