‘आशिक़ी
क्या पहली नज़र में प्यार हो जाता है ?
जुबाँ गुमसुम रहती है नजरों से इज़हार हो जाता है ,
दिल से दिल की राह बनती है ,
ए़हसास ए इक़रार हो जाता है ,
उल्फ़त के सफ़र में अपने परा़ए से लगते हैं ,
कल तक थे जो अजनबी ,
हम़ऩवा हम़राज़ बन जाते हैं ,
अपने ग़म से बेख़ुद आश़ना के द़र्द से द़िल में टीस सी उठती है ,
हर उस़ूल फ़ीके लगते हैं ,
बग़ावत का जज़्बा द़िल मे दस्त़क देने लगता है ,
ख्या़लातों का हुज़ूम ज़ेहन पर ता़री होता है ,
तो ख्वा़बों में मन भटकता है ,
‘आशिक़ी का नश़ा दीव़ानग़ी की हद़ से गुज़रता हुआ कय़ामत तक की मंज़िल पर फ़ना होता है ।