आवाहन!!!
नारी तुम स्वयं सर्वस्व हो
फिर क्यूं सहने को विवश हो
बीती बातों को भूलो
आज की नारी हो ,समझो
शक्ति तुम्हारी दुर्गा सी हैं
सरस्वती से विद्या पाई हो
फिर,अबला,निर्बल और
अनपढ़ की उपमा से क्यूं
तुम सजाई जाती हो!!!!
भ्रमजाल से निकलो!!!
अपनी शक्ति से उत्थान के
राह स्वयं बनाओ!!!
बनें जो राह में कोई कंटक
तोड़ ,आगे बढ़ो, लड़ो
स्वाभिमान से उठाओ मस्तक
मात्र एक कतरा , नहीं है नियति
बढ़ो आगे,समेट लो खुशियां सारी
तुमसे ही बनी है ये वसुधा न्यारी
लक्ष्मी बाई,सावित्री बाई फुले
भीकाजी कामा,सरोजनी नायडू
दुलारी देवी ,गोदावरी दत्ता
कल्पना चावला,किरण बेदी
और भी कितनी ही मनस्विनियों
को तुम क्यों भुल जाती हो
हर पल प्रेरणा इनसे मिलती
जीवन सुगम और सशक्त बन जाती
अंबर की ऊंचाइयों को छूकर
अंतरिक्ष भेद डाला तुमने!!!!!
फिर भी दहेज के समक्ष घुटने टेके तुमने ?
पुरुषार्थ से डरना छोड़ो
बेड़ियों को तोड़ना सीखो
क्यूँ पाषान बना दी जाती हो
अग्नि में समाहित कर दी जाती हो?
अंधविश्वास, रूढ़ीवाद का करो त्याग
अड़चनें हैं ये,तनिक करो तुम विचार
कोख से पहरा हटाओ न!!!!
आने दो न ,नन्हीं सी हूं!!!तुम्हारी ही अंश!!
कैसे चलाओगे !!!इनके बगैर अपना वंश
उठें जो हाथ तुम्हें छूने को
चेहरों पे ’’बूंदें’’उड़ेलने को
करना नहीं ईश्वर से गुहार
बन जाना तुम …..काली …
कर देना दुश्मन पे प्रहार तुम
अपने अधिकारों को समझो
शिक्षित हो एक एक नारी
ऐसी अलख तुम जगाओ!!!!
सही मायने में तभी सफल
होंगी नारी ये जानो!!!!