आवाहन…
जब भी यशपाल जी की कहानी “पर्दा ” पढ़ती थी तो मन अंत पढ़ने से डरता था ( आज भी लगता है ) कि कोई आ कर रोक ले उस ” पठान ” को ….इस कहानी में गरीब और लाचार वर्ग को दर्शाया गया है परंतु आज उम्र और अनुभव से देखती हूँ तो लगता है कहानी बदल गयी है….वो जर – जर “पर्दा ” आज बेशकीमती हो कर “संभ्रांत” और जिनको ” बड़ा घर ” कहते हैं उनके घरों पर पड़ गया है जहाँ ढकोसला , झूठ , दिखावा , मखमल के अंदर छिपे हज़ारों राज़ , अपनों को अपना कहने की ( अपना समझने की नही ) बेहतरीन अदायगी जिसको देख कर ” नेशनल अवार्ड ” देने का मन करे ….काश आज कोई उस ” पठान ” को फिर से भेज दे…………
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 01/08/2016 ))