“आवारा-मिजाजी”
“आवारा-मिजाजी”
खाए जिसने मोहब्बत के फ़रेब
पता होते उसे आँसू के रंग
निगाहों के दर्द, शोलों के मर्म
क्या मेरी तरह तुम भी हो
कोई इंसान आवारा-मिजाज,
तब तो जकड़ा होगा अरमानों ने
जलते होठों ने लिया होगा खिराज।
-डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति