आवारा बादल
मन रंगीन बादलों सा अवारा
अधखुला सा नींद में ,
चाहे ,अनचाहे
उड़ते चले जाते…पर
न जमीं पर ,न आसमाँ में
ठौर कहाँ?
कहीं और, दूर कहीं और..
जहाँ सूरज की रोशनी भी छू न सके,
धरती की हरियाली भीगों न सके,
जहाँ प्रेम बंधन न हो,
बंधकर भी बंध न पाऊँ,
मुक्त होकर भी मुक्त न हो पाऊँ,
बस पिघल जाऊँ ,पिघल जाऊँ
मोम की तरह,
फूलों की पंखुड़ियों सा कोमल अहसास
लिए,निःसीम आसमॉं सा विस्तार लिए,
शब्द से निःशब्द हो जाऊँ,
अपने ही अस्तित्व में
ब्राह्मण्ड- सा विखंडित हो जाऊँ।
पूनम कुमारी(आगाज ए दिल)