आवाज तो दो
आवाज़ तो दो……..
ये बात 2015 की है, मै करोलबाग से जहांगीरपुरी जाने वाली डीटीसी बस में बैठा। आंनद पर्वत के पास एक महोदय सामान के साथ बस में दाखिल हुए, बस की रफ्तार बहुत ही धीमी थी क्योंकि रास्ता बहुत संकरा है और वनवे भी। सामान का वजन ज्यादा था और खुद भी स्वस्थ्य दिख रहे थे, दुकानदार थे। कंडक्टर से उन्होंने दस रुपए का टिकट लिया और सामान बगल में सेट करके बैठ गए, कंडक्टर ने सामान का टिकट लेने को कहा तो वे भड़क गए। उनका कहना था कि वह रोज चलते है और कभी किसी ने टिकट, सामान के लिए नहीं मांगा। उनका बड़बोला पन और कंडक्टर को ज्ञान देना, रफ्तार पकड़ ली। अब वो पहले सिस्टम, कंडक्टर और सभी को चोर बोल दिया। बस के सभी यात्री उनकी बकवास सुन रहे थे, और सबको चोर बोलने का उनका फार्मूला कामयाब हो रहा था, कंडक्टर हम सभी यात्रियों को देख रहा था। मुझसे रहा नहीं गया, मै अचानक उसके ( यात्री दुकानदार) के पास गया और बोला,” चुप” अब तू एक शब्द नहीं बोलेगा, मै चोर नहीं हूं ( मेरी आवाज थोड़ी तीव्र थी), अचानक सभी यात्री मेरे और दुकानदार की तरफ देखने लगे, मैंने भी मौका देखा और सबसे पूछ दिया,” ये आदमी ( दुकानदार) आप सबको चोर कह रहा है, क्या आप सभी चोर हो”। बस क्या था ऐसा लगा जैसे सभी यात्री उस दुकानदार को सजाए मौत दे देंगे। ड्राइवर ने बस रोक दी थी, दुकानदार अपने किए पर शर्मिंदा था और पूरा टिकट लिया। यात्रियों के चेहरे पर गर्व का एहसास दिखा और बस कंडक्टर अपनी सेवा के प्रति कृतज्ञ। अंत में मुझे अनंत खुशी, सत्य को धीरे परन्तु सटीक रास्ता बनाते हुए।
आप की कोशिश ही शुरुवात है- जै हिंद