आलेख – मित्रता की नींव
मित्रता की नींव
बदलते समाज के साथ आजकल मनुष्य भी अपनी पसंद,दिनचर्या व संबंध परिवर्तित कर रहा है। बिना कोई परिवर्तन के गुजारा भी संभव नहीं है। हर किसी को अपने समक्ष परिस्थिति के अनुसार ही व्यवहार प्रदर्शित करना पड़ता है। इसी में शामिल व्यक्ति के साथ एक हिस्सा अपना अहम् भूमिका निभाता है वो है मित्रता।
अपने जीवन में हर जगह मित्रता की आवश्यकता जरूर पड़ती है। हाँ उस मित्रता का स्वरूप कुछ भी हो सकता है।
जयशंकर प्रसाद जी ने अपने मित्रता नामक निबंध में लिखा है कि मनुष्य को अपने भावी जीवन के लिए मित्रता की जरूरत जरूर पड़ती है। प्रसाद जी ने मित्र चुनने की प्रवृत्ति छात्रावस्था में बताई है जो बिलकुल सही है।
इसी प्रकार मनुष्य के आगे के जीवन में भी मित्रता का विशेष महत्व रहता है।इसलिए मित्र चुनने के समय आप पहले सामने वाले व्यक्ति के बारे में पूरी तरह जान लेना चाहिए कि वो कैसा है?,उनकी रुचि कैसी है?,उनका व्यक्तित्व कैसा है?
ये सभी सवाल प्रसाद जी ने भी मित्रता में प्रविष्ट किये हैं।
गर भूल से गलत मित्रता की संगत हो जाती है तो मनुष्य का भावी जीवन बर्बाद हो जाता है। उनकी सब आशाएँ धूमिल हो जाती है।
हमारा एक मित्र था- त्रिपाठी।उनका नाम नहीं दे सकता हूँ।उन्होंने मुझे बताया कि मैंने एक मित्र चुना फेसबुक पर ही।फिर देर रात तक बातें होने लगी…वाटस्प के जरिए तथा बाद में फोन के द्वारा सीधे ही।खूब जान पहचान बना ली। उन्होंने बताया कि वो सरकारी नौकरी में है। फिर क्या था बातचीत चलते चलते बात रिश्ते में बदल गई।
उसने बताया कि हम एक बार किसी होटल में मिले…..शादी की बात हुई।
उसने कहा कि मैं तुम्हारे घर आऊँगा और अपने रिश्ते की बात करूंगा।
कुछ दिन निकल गए कोई बातचीत नहीं हुई…सिर्फ ब्लैक मेल का मैसेज आया और उसमें रुपयों की माँग की गई थी।
तब मैंने पूछा तो आपने क्या किया ?
उसने बताया कि मैंने सबकुछ बंद कर दिया।
वाटस्प,फेसबुक वो सिम भी जिसका इस्तेमाल होता था।
इसलिए मित्रता करते समय बनने वाले मित्र के बारे में आपको पूरी जानकारी होनी चाहिए ताकि आगे जीवन में कोई समस्या न सामने खड़ी हो।
हाँ मित्रता की जो नींव है वो विश्वास है।विश्वास के सहारे ही मित्रता को पहचाना जा सकता है। लेकिन आज की जो छात्रावस्था की प्रवृत्ति है वो बहुत ज्यादा खराब हो गई है। हाँ पढ़ने में बहुत ज्यादा होशियार हो सकते हैं लेकिन उनके ज्ञान और व्यक्तित्व का विकास नहीं हुआ है।उनमें मित्रता का कोई मोल नहीं है…..उनकी रुचि,आदतें व चलन दिन प्रतिदिन बिगड़ता जा रहे है।
उनमें संस्कारों की कोई झलक नहीं दिखाई देती। आजकल के बच्चे छोटे-बड़ों व गुरुजनों का आदर सत्कार करना भी भूल गए हैं।
ये सब मित्रता की संगत का ही असर है।।
मुझे मेरे सभी दोस्त बहुत प्रिय है क्योंकि मुझे उनसे हमेशा कुछ न कुछ सीखने को ही मिलता है।
धन्यवाद
रोहताश वर्मा ‘ मुसाफिर ‘