आलता महावर
रचना क्रमाँक –2
आना ही होगा
मेरे मन के आँगन का ,
वह झरोखा खुला हुआ है ,
आओगे तुम!!
आना ही होगा,
नेह निमंत्रण पड़ा हुआ है।
ले आना सर्द मौसम में ,
कॉफी से उठती गर्माहट ,
या ले आना चूल्हे से
थोड़ी सी अपनत्व की तपिश।
या फिर ला सको तो ..
ले आना शब्द वही,
खो जाती थी पढ़ते ही ,
कविता में मनुहार वही।
सूना है मन का आँगन ,प्रिये
रौप जाना फिर एक गुलाब ,
सौंधी यादों सा स्वप्निल संसार।
सुनो, आओगे न फिर एक बार ?
आ जाना ,खुला है मन का द्वार ।
एक आहट …सुनने को आतुर ।
आओगे न!!
आना ही होगा ,
मेरे सूने हृदय के द्वार।
©पाखी