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9 Nov 2020 · 4 min read

“आर्टिकल 356 और सुप्रीम कोर्ट”

जनता पार्टी के नेता एस. आर. बोम्मई ने 13 अगस्त 1988 को कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। कुछ ही दिनों बाद उनके एक विधायक ने पार्टी छोड़ दी और राज्यपाल को बीस विधायकों के हस्ताक्षरों वाले पत्र सौंपे, जिनमें बोम्मई सरकार से समर्थन वापसी की बात कही गई थी।

19 अप्रैल 1989 को राज्यपाल ने राष्ट्रपति को एक पत्र लिखा। उसमें कहा गया था कि इन विधायकों द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के कारण अब बोम्मई सरकार के पास बहुमत नहीं रह गया है। इसलिए संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकार बर्खास्त करके राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए।

लेकिन अगले ही दिन उन बीस में से सात विधायकों ने पत्र लिखकर राज्यपाल से कहा कि सरकार से समर्थन वापसी के पत्रों पर उनके नाम से किए गए हस्ताक्षर जाली हैं। उसी दिन मुख्यमंत्री बोम्मई और उनके कानून मंत्री ने भी राज्यपाल से मिलकर यह जानकारी दी कि वे विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर अपना बहुमत सिद्ध कर देंगे। इसी आशय का एक पत्र उन्होंने राष्ट्रपति महोदय को भी भेज दिया।

लेकिन इसके बावजूद भी राज्यपाल वेंकटसुब्बैया ने राष्ट्रपति को फिर एक रिपोर्ट भेजी कि राज्य सरकार ने बहुमत खो दिया है, इसलिए सरकार बर्खास्त कर दी जाए। उसी दिन राष्ट्रपति ने सरकार की बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया।

इसके खिलाफ 26 अप्रैल को बोम्मई ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। लेकिन तीन जजों की विशेष खंडपीठ ने याचिका खारिज कर दी।

अब बोम्मई ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सर्वोच्च न्यायालय में 9 जजों की एक विशेष बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। फैसला आने में 5 वर्ष लगे। इस दौरान मेघालय, नागालैंड, मप्र, हिमाचल, राजस्थान आदि राज्यों में भी किसी न किसी बहाने राष्ट्रपति शासन लगाकर निर्वाचित सरकारें बर्खास्त की गईं थीं।

इन सभी मामलों की सुनवाई बोम्मई केस के साथ ही की गई और अंततः 11 मार्च 1994 को सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया।

अपने फैसले में अदालत ने कहा कि राष्ट्रपति मनमाने ढंग से धारा 356 का उपयोग नहीं कर सकते। यदि किसी राज्य सरकार ने बहुमत खो दिया हो, तो विधानसभा को निलंबित किया जा सकता है। लेकिन राष्ट्रपति के इस आदेश को दो माह के भीतर संसद के दोनों सदनों में पारित करना आवश्यक होगा। अन्यथा विधानसभा का निलंबन रद्द माना जाएगा और राज्य सरकार पुनः कामकाज जारी रख सकेगी। यदि बहुमत के लिए शक्ति-परीक्षण करना हो, तो वह केवल विधानसभा में ही हो सकता है, राजभवन या राष्ट्रपति भवन में नहीं।

इसके अलावा कोर्ट ने कुछ विशेष परिस्थितियों का जिक्र किया है, जब किसी राज्य सरकार को बर्खास्त किया जा सकता है, जैसे यदि चुनाव के बाद कोई भी दल बहुमत सिद्ध न कर पाए, या कोई राज्य सरकार अगर केन्द्र के किसी संवैधानिक निर्देश को न मान रही हो अथवा भारत के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह को उकसा रही हो।

लेकिन साथ ही कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट कह दिया था कि शिकायत मिलने पर सुप्रीम कोर्ट को ऐसे सभी मामलों की समीक्षा करने और निर्णय को पलटने का अधिकार भी रहेगा।

बोम्मई केस के पहले तक नेहरू जी से नरसिंहराव तक की कांग्रेस सरकारें अपनी मनमर्जी से कभी भी कोई भी कारण बताकर विपक्षी दलों की राज्य सरकारों को बर्खास्त करती रहती थीं। महान नेहरू जी ने 7 बार और इंदिरा जी ने 39 बार इस तरीके से सरकारें बर्खास्त करवाई थीं।

लेकिन बोम्मई केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने के बाद अनुच्छेद 356 का उपयोग करना अत्यधिक कठिन हो गया। 1999 में अटल जी की एनडीए सरकार ने राबड़ी देवी की सरकार को हटाने का प्रयास किया था, लेकिन राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण वह निर्णय रद्द करना पड़ा और एक माह के भीतर ही राबड़ी सरकार फिर से बहाल हो गई।

जिन लोगों को भ्रम है कि केन्द्र सरकार के पास अपनी मनमानी करने की असीमित शक्तियाँ हैं और महाराष्ट्र में अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी से उत्तेजित होकर मोदी-शाह को तुरंत राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा देना चाहिए, वे कृपया 356 के संदर्भ में बोम्मई केस के बारे में पढ़ें।

आप भले ही अत्यंत भावुक या उतावले होकर मोदी को कुछ भी करने का आदेश सुनाते रहें या मोदी को सबक सिखाने की धमकियाँ देते रहें, लेकिन मुझे नहीं लगता कि मोदी-शाह को ऐसा कोई शौक है कि पर्याप्त कानूनी आधार के बिना कोई भी सरकार बर्खास्त करें और बाद में अदालत जब उनका फैसला पलट देगी तो अपनी बेइज्जती करवाएं।

जो अदालत अर्नब गोस्वामी को जमानत देने भर के लिए इतने दिनों से नाक रगड़वा रही है, वह अदालत उसी अर्नब गोस्वामी के बहाने किसी राज्य की सरकार की बर्खास्तगी को अपनी सहमति दे देगी, ऐसा जिन लोगों को लगता है, उनकी बुद्धि को मैं विशेष प्रणाम कर रहा हूँ। बाकी आप जब चाहें, जैसा चाहें मोदी-शाह को सबक सिखाने के लिए स्वतंत्र हैं। सादर!

——खेर मोदीजी को क्या करना है वो उन्हें पता ह…….

???️माँ तुझे प्रणाम?️??,

Language: Hindi
Tag: लेख
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