!! आराम से राम तक !!
जब भी मुसीबतें पैरों में मारती ठोकरें
मैं मुसीबतों को ही ठोकर मारता चला गया।
जब भी ऑधी-तूफानों ने उड़ाना चाहा
मैं भगौड़ी हस्ती की हंसी उड़ाता चला गया।
जब भी वक्त के थपेड़े थप्पड़ मारते
मैं वक्त की भी पीठ थपथपाता चला गया।
जब भी दर्द इस दुनिया ने दिये
मैं जख्मों को ही सहलाता चला गया।
जब भी ये बाधाएं रास्ते रोकती
मैं यूंही बाधाओं को बांधते चला गया।
जब भी लहरें लौटाना चाहती मुझे
मैं लहरों को ही लांघते चला गया।
ये दुनिया ये वक्त ये दर्द और
ये ऑधी-तूफान ये विकट बाधाएं।
बढ़ाते रहे संघर्ष, मेरी जिजीविषा
रखते रहे मेरे निकट आशाएं।
और क्या आजमाएगी ये दुनिया
मैं हर बार मुकाम तक चला गया।
ऐसे ही जिंदगी की सुबह से चल
जिंदगी की शाम तक चला गया।
निकला था कभी रीते हाथ
तभी हाथों में हाथ मिलाए चल पाया।
कभी ना भरे अपने खाली हाथ
तभी तो माया का जंजाल टल पाया।
कुछ पथ पर पांवों से चला
पूरा जीवनपथ खाली हाथों चला गया।
तेरा तुझको अर्पण का संदेश
रख कर सिर-माथों चला गया।
अब ऑखें बंद हुई तो गम नही
मैं अब तृप्ति धाम तक चला गया।
सच्चाई और अच्छाई से चलकर
आ-राम से राम तक चला गया।
~०~
जुलाई, २०२४-© जीवनसवारो