” आराधक “
डॉ लक्ष्मण झा परिमल
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मुझे लिखना नहीं आता
मैं अपनी बात कहता हूँ
नहीं है ज्ञान शब्दों का
सरल भाषा में लिखता हूँ
ज़िगर में है मेरी चाहत
जगत में नाम मेरा हो
रहूँ या मैं नहीं जग में
कहीं भी काम मेरा हो
ना ठुकराओ मेरी कविता
दिलों की बात भी सुन लो
ना आहात करना मैं सीखा
कभी तो प्यार भी कर लो
मेरी चाहत है वर्षों से
करूँ साहित्य की पूजा
रहूँ चरणों में कवियों की
करूँ नहीं काम मैं दूजा
नहीं है पूर्णता मुझ में
विध्यार्थी बनके रहना है
अभी तो सीखना मुझको
आराधक बन के रहना है !!
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डॉ लक्ष्मण झा परिमल
साउंड हैल्थ क्लीनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
30.08.2024