आरंभ
गगन वीणा बजे
किरण के ताल पर
रागनी जो सजी
आरंभ नए दिन का हुआ
किरण की राखी प्रकृति ने
हरित कर बांधी विभव के
चरण लौ के चढ़ाए
खग कुल के कलरव सुनाएं
कमल ने खोले कटोरे
शक्ति सलिल से सीच- सींचकर
फेरी अपनी ओर खींच कर
कहता
मेरा पथ आलोकित कर दो
प्राणों में नव स्पंदन भर दो।