आया हूँ मैं तुम्हारें शहर में,
गजल
मैं तुम्हारें शहर में आया हूँ ओ शहर वालों,
तुम ही मैरा साथ निभालों,
अपनी दुनिया से दूर आया हूँ, ओ शहर वालों,
तुम ही मैरी बाँहों को सभालों,
आया हूँ मैं जिसकी खोज में तुम ही उसको खोज निकालों,
मैं तुम्हारें शहर में आया हूँ ओ शहर वालों,
तुम ही मैरा साथ निभा लो,
जिंदगी में खाया हैं धोका लेकिन चला आया हूँ शहर वालों,
तुम भी मैरा साथ निभा लो,
अन्जाना हूँ,वेगाना हूँ तुम ही मुझे अपना बना डालों,
मैं तुम्हारें शहर में आया हूँ ओ शहर वालों,
तुम ही मैरा साथ निभा लो,
आया हूँ मैं अकेला कोई मैरा साथ निभा लो,
आया हूँ मैं तुम्हारें शहर में ओ शहर वालों,
तुम भी मैरा साथ निभा लो,
जिदंगी में जीना हैं उसका भी मकसद निकालों,
ये दुनिया हैं किस नाम की इसका भी पता लगा लो,
करूँगा याद मैं तुमको ओ शहर वालों,
तुम अगर मैरे यार को ढूढ़ निकालों,
तुम ही मैरा साथ निभा लो,
क्या सब लोग हैं यहा पर दिल तोड़ने वाले,
तुम भी इसका अनुमान लगा लो,
तुम भी मैरा साथ निभा लो,||
लेखक—Jayvind singh Nagariya ji