आया बसन्त आनन्द भरा
सारे प्राणी के मन को , मथने लगा अनंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।
पंच सर गहे निज हाथों में , शोषण-स्तंभन नाम ।
तापन – मोहन-उन्मादन है , करते मिलकर काम ।
मारे जिनको कामदेव है , पीड़ित होता अंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।
लेकर कर में पंच पुष्प का , जिनको मारें तीर ।
हो जाते तब अधीर प्राणी , योगी-मुनि- मतिधीर ।।
देवाधिदेव महादेव का , ध्यान हुआ था भंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन मेंं बहुत तरंग ।।
होते मनोज पंच पुष्पधर , नवमल्लिका-अशोक ।
आम्र-कमल-नीलोत्पल देते , मन में वियोग शोक ।।
जिनपर इनका प्रहार करते , चढ़ता उसपर रंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।
पंच सर सहित पंच पुष्प है , मारे यदि रतिनाथ ।
चाहत बाढ़े प्रीत मिलन की , उमंग – तरंग साथ ।।
प्रकृति तक मनोहारी लगती , बसन्त ऋतु के संग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।
माथे शोभित बौर मुकुट-सा , वर बन खड़ा रसाल ।
ढाक सजा है दुल्हन जैसे , साड़ी – चुनरी लाल ।।
सोह वनस्पति पुष्पित सारी , प्रसून रंगविरंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।
खेतों में पीत पुष्प सरसों , नीली अलसी भ्रात ।
गेहूँ की बाली लगती है , ज्यों रोमांचित गात ।।
नवयौवना धरा लगती है , सबके हृदय उमंग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।
खग-मृग प्राणी आनन्दित हैं , ठण्ड – ताप में मेल ।
आह्लादित ‘ठाकुर’ सब होते , बसन्त ऋतु का खेल ।।
करते कमाल कामदेव हैं , प्राणी ढूँढ़ें संग ।
आया बसन्त आनन्द भरा , मन में बहुत तरंग ।।