आया खूब निखार
** गीतिका **
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स्वर्णिम किरणों का हुआ, प्राची में विस्तार।
कलियां खिलने लग पड़ी, आया खूब निखार।
स्वास्थ्य वर्धक है बहुत, सुबह सुबह की धूप।
सूर्यदेव की जानिए, महिमा अपरंपार।
ठँडी हवा चलने लगी, मौसम है अनुकूल।
झूम उठे सबके हृदय, छाया मधुर खुमार।
यह जीवन हर वक्त जब, है परिवर्तनशील।
सबको मन भाता बहुत, सपनों का संसार।
स्पंदन तो रुकता नहीं, सुबह दोपहर शाम।
समय सामने है यही, जीवन का उपहार।
पर्वत घाटी वृक्ष नदी, खेत और खलिहान।
नैसर्गिक है यह धरा, खूब कीजिए प्यार।
अनगिन तारों संग है, रजत चांदनी रात।
स्नेह भरा कोमल हृदय, चुपके रहा निहार।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, मण्डी (हि.प्र.)