– आम मंजरी
फागुन अभी चढ़ा ही नहीं
आम का पुराना पेड़
फिर फागुन गाने लगा
अपनी सारी डालो को फुनुगुआ ने लगा
बौर आने लगा बौर आने लगा
बूढ़ा पेड़ भी यौवन लाने लगा
काली काली कोयल को
डालो पर बुलाने लगा
बौर आने लगा बौर आने लगा
फागुन राग सबको सुनाने लगा
साथ खड़ा टेसू भी
भाईचारा निभाने लगा
फगुआ आया फगुआआया गाने लगा
चारों तरफ हो रहा है सखियों का शोर
हरे हरे पत्तों पर पीला पीला बौर
जहां चले हवा वहीं चले बौर
झांक रहा ऐसे जैसे नई दुल्हन के कोर
तेज तेज हवा चले कोयल करे शोर
हवा संग झूम रहे पीले पीले बौर
मौलिक एवं स्वरचित
मधु शाह