आब-ओ-हवा
विषाक्त आब-ओ-हवा,
जीवन को करती त्रस्त,
दिनचर्या होती पस्त।
रूग्णता पांव पसारती,
कहर बरपाती,
बवाल मचाती।
दमघोंटू फ़िज़ा,
रोगियों की तादाद बढ़ाती,
मौत का
फरमान ले आती।
मानव जनित कृत्य
मानवता पर भारी है,
मुट्ठी भर लोगों का स्वार्थ,
क्षण-प्रति क्षण जारी है।
चंद कागज के टुकड़े,
कैसा खेल खिला रहे हैं,
इंसानी बस्ती में,
कुछ सांप तो कुछ,
सपोले नजर आ रहे हैं।
स्व हित से ऊपर उठकर
परहित का ध्यान धरें,
सुखमय हो जीवन सबका,
ऐसे मन में भाव भरें।