आबाद रहे हर मधुशाला
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बच्चन तेरी मधुशाला में
देखा तेरा साकी बाला।
ओठों पर स्मित हँसी देखी
कर में थामे देखा प्याला।
उसे निमंत्रित करके मैंने
अपना जीवन धन्य किया।
इस मधुशाले का रूह कोई
रक्त–पिपासु पर‚बाला।
हाला बहता हुआ लहू है
ध्वंस की जिह्वा है प्याला।
घृणा‚द्वेष कर ओढ़ सभ्यता
शीत–युद्ध है खेल रही।
क्या ही अच्छा हो खुल बातें
करने आयें मधुशाला।
मधुशाले में मधुविक्रेता
मधु नहीं‚बेच रहा प्याला।
ओढ़ा वस्त्र सफेद बेदागी
मन का पर‚बिल्कुल काला।
शोषण का इतिहास‚खण्डहर
हर के नीचे छुपा हुआ।
अथवा वह खण्डहर नहीं होता
होती तेरी कोई मधुशाला।
मधु का लोभी यह भी वह भी
यह भी वह भी मतवाला।
यह भी प्यासा आस लगाये
वह भी प्यासा है लाला।
यह पीकर संतुष्ट हुआ तो
वह भी सच हो जायेगा।
प्यास और तृष्णा नहीं मिटती
मिट जाये चाहे मधुशाला।
प्यास मधुर हो या कड़वा
इसे चाहिए है हाला।
पर पीड़ा पर दुःख से चूकर
भरी हुई हो मधुप्याला।
शक्ति और साम्र्थय पिघलते
अश्क से किसने देखा हैॐ
वह तो भाई लाल शिला से
निर्मित बहरी मधुशाला।
उसे ज्ञात है हिचकिचायगी
अन्धकार में हर बाला।
अगर निचोड़ा नहीं गया तो
नहीं भरेगी रे प्याला।
नीम अंधेरी की आदी आँखों की
चमक में भूख भरी।
रक्त–पिपासु हो गयी कैसे
खुदा तुम्हारी मधुशाला।
बना हुआ है मन्दिर‚मस्जिद
इस हाला की मधुशाला।
एक दूजे को कहकर काफिर
भरता जाता है प्याला।
पीने वाले लाज करें क्यों
उनका है क्या कुछ जाताॐ
मुफ्त मिला है बाला‚हाला‚
प्याला‚साकी‚मधुशाला।
मैं मन्दिर की नींव डालता
बनवा देता तू मधुशाला
तू इतना है क्रूर वहीं पर
बैठ बनाताा है प्याला।
नींव हिली है हर बाड़ी की
वक्त नहीं ठहरा है कभी।
आज नचा ले जितना जैसा
भूधर कल होगी मधुशाला।
गढ़ जैसा निर्माण किया
और किला बनाया मधुशाला।
पहरे पर पहरा बिठा दिया
इतनी है रक्षित मधुशाला।
इन्क्लाब की आँधी किन्तु
लील लिया करता है सब।
सुलग रही है अभी गर्भ में
ध्वंस करेगी मधुशाला।
मदिरा को जब जब हाथ बढ़े
हर बार टूट जाये प्याला।
हर बार अधर तक आ आकर
हाला बन जाये विष–ज्वाला।
हर शिव शोषित का हो साथी
दुःख इसके पीकर नीलकंठ।
निर्बल के मन में ताण्डव का
बस नाच जगाये मधुशाला।
मधु विक्रेता बेच रहा है
आयुध कह कह कर प्याला।
सत्ता मद में मस्त मदकची
चाट रहा खुश हो हाला।
उसे बना रहना सत्ता में
चाहे दुनिया जल जाये।
चलो चलें गम घोल‚घुला दें
अब हम चलकर मधुशाला।
किसकी प्यास बुझाने आई
हाथों में भरकर प्याला।
किसको किसको बाँटेगी वह
अपनी यह षटरस हाला।
कर सोलह श्रृँगार नृत्य
करती आई छमछम साकी।
दिया निमंत्रण उसने किसको
किसको उसकी मधुशाला।
सब प्यासे हैं इस दुनिया में
पाने को उत्सुक हाला।
जीवन में जितनी कटुता
उतनी ही मधुर है मधुशाला।
किसे कहेगी ‘ पिओ नहीं तुम’
किसे कहेगी ‘तुम आओ’।
बन्द नहीं क्यों कर देती है
यह दुनिया रूपी मधुशाला।
सृष्टि जिसने किया‚पुनः
बनवायेगा वह मधुशाला।
वह अनुभवी अब बनवायेगा
विष से रहित मधुर हाला।
जीव‚जीव को सह जीवन का
जन्म से ज्ञान दिलायेगा।
खुद जीने को नहीं किसीका
छीनेगा व ह प्याला।
आज खरे डरते खोटे से
शीशे से पत्थर का प्याला।
जालिम के हाथों क्योंकि है
नीलाम हो गई मधुशाला।
जुल्मों के इतिहास लिखेगी
तब हाला कहलायेगी।
अब शराब के बदले शोला
बाँटो री‚साकीबाला।
क्यों शराब भर जाम उठाते
ललचाता है क्यों हाला।
बरबस उठ जाते क्यों पग हैं
रे‚जाने को मधुशाला।
तू न समझता‚मैं समझाता
साकी की तेरी हसरत।
पर‚जो अमीर तू नहीं‚नहीं
पा सकता है साकीबाला।
मौत सजा हो पीने आना
जुल्म से लड़ने को प्याला।
इन्कलाब का आग लगाने
आते रहना मधुशाला।
सत्ता और हुकूमत जिसके
उसके सिर चढ़ जाते सिंह।
उसकी उँगली में फँस नाचे
हर साकी की मधुशाला।
साकी का सौन्दर्य लजाकर
गई आज है मधुशाला।
रँगीनी‚ रौनक‚यौवन से
हार गया भी है हाला।
इतनी सुगठित देह धरी
और धरकर आयी है साकी।
एक नजर बस एक नजर
कहते सब झपट रहे प्याला।
नशा बाँटता फिरता योगी
छुआ नहीं जिसने प्याला।
हर भोगी को बतलाता है
किस पथ जाती मधुशाला।
साकी का परिचय बतलाता
मधुर और कितनी हाला।
इन्कलाब के योगासन से
क्योंकि उठा लाया प्याला।
लिखते जाना शान में इसकी
भर देना तू मधुशाला।
पहले पीकर हो लेना पर‚
ऐ शायर‚ तू मतवाला।
शायर तू जो कभी लिखे गजल‚
गजल हमारी साकी की।
कलम कलश को तोड़ बनाना
स्याही को लेना हाला।
ईश्वर साकी‚जीवन हाला
दुनिया ही तो मधुशाला।
पीड़ा‚दुःख‚संत्रास‚घुटन से
निर्मित सारा ही प्याला।
मरने को मन तरसे कितना
पर‚जीना जीवन का कर्ज।
बिना पिये है कौन जियाॐ
है जिया सिर्फ पीनेवाला।
हो जाता हैरान मौत
जब भी आता वह मधुशाला।
कैसेॐ कैसेॐ हँसी बाँटती
सुख उपजाती है हाला।
पीनेवाले के उपहासों से
मर जाती है मौत यहाँ।
जीने को मधुशाला आया
मरने भी आना मधुशाला।
श्वेत चाँदनी जैसी काया
नख–शिख सजी हुई बाला।
यौवन अँटता नहीं बदन में
छलक रही जैसे हाला।
गहने‚जेवर‚फूल‚इत्र सब
पाते शोभा सज जिस पर
वह मधुशाला में आयें
क्यों झूम न जाये मधुशाला।
जब चढ़ता है नशा‚ नशीली
हो जाती तीखी हाला।
दिल से लोग लगा रख लेते
टूटी‚ फूटी‚जूठी प्याला।
पर जब जाता उतर सभी
लगता है कितना अर्थहीन
इसीलिए कहना है कि
आबाद रहे यह मधुशाला
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