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17 Feb 2024 · 1 min read

*आपदा से सहमा आदमी*

चंद दिनों की सुर्खियां
नहीं बनना चाहता हूं मैं
किसी पहाड़ के मलवे में
नहीं दबना चाहता हूं मैं

हरगिज़ ये नहीं चाहता
आपदा की भेंट चढ़ जाऊँ मैं
फिर रात के अंधेरे में
बुलडोज़र से ढूंढ़ा जाऊँ मैं

फ़ेसबुक की वॉल पर
कोई श्रद्धांजलि दे, नहीं चाहता हूँ मैं
अच्छा आदमी था, बुरा हुआ इसके साथ
कोई मेरे लिए कहे, नहीं चाहता हूँ मैं

जब घरवाले मेरा इंतज़ार करें
चाहता हूँ उनका इंतज़ार ख़त्म करूँ मैं
काश ये बादल अब न फटें
नहीं चाहता मिट्टी में दबकर मरूँ मैं

बनाया है आशियाना पाई पाई जोड़कर
वो पलभर में मलवा बने, नहीं चाहता हूँ मैं
बहुत हो गई बरसात इस बरस अब
थम जाए ये बारिश अब, यही चाहता हूँ मैं

वैध तरीक़े से ही मज़बूत घर बनाएँ हम
जिसमें जल निकासी का प्रबंध हो, यही चाहता हूँ मैं
सार्वजनिक स्थलों पर हो उचित जल निकासी व्यवस्था
बस, न जाए कोई जान यही चाहता हूँ मैं।

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Books from सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
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