आपके शहर से….
न गिला न शिकवा न तिज़ारत आपके शहर से
हमे तो बस जरा सी मोहब्बत आपके शहर से।
छोड़कर हीरा रख दिया ,सारे नगीने खिदमत में
हमे चाहिए हमारी ही अमानत आपके शहर से।
आगे पर्दा,कांच का टुकड़ा,तेज़ धूप,निशाना मै
हाय अल्लाह ये कैसी शरारत आपके शहर से।
दीदार-ए-इश्क़ की गुस्ताखी ,हम हिरासत में है
क्या कोई लेगा हमारी जमानत आपके शहर से।
इल्जाम-ए-इश्क़, सजा-ए-मौत, मगर जिन्दा हूं
मोहब्बत भी कर रही इबादत आपके शहर से।
हाथ दे दो उसका इक करार पर ,खुदा कसम
हम मिला देंगे अपनी रियासत आपके शहर से।
प्यार की बात है अभी प्यार से समझ लो,वरना
बड़ी खुद्दार है हमारी सियासत आपके शहर से।
इश्क़-ए-दास्ताँ सुनाई है रात भर रो-रो कर मैंने
आखिर मिल ही गयी इज़ाज़त आपके शहर से।
बेशक ले जा रहा हूं अपनी मोहब्बत यहाँ से
“राही” को अब नही शिकायत आपके शहर से।
-ऋषभ शुक्ला “राही”
9721726567