आपका परिधान पहन
माँ मैं नही थी इतनी धीर गंभीर
न ही इतनी शांत थी पर न जाने
मैं अब कैसे शांत सी या यूं
कहे कि शून्य सी हो गई हूँ मै
पर फिर भी आपका परिधान पहन
खुश हो लेती हूँ अब भी
वक्त के साथ साथ ढल सी गई हूँ
अपनी सभी शरारते भूल ही गई हूँ
अब न जाने क्यो संजीदगी सी आ गई हैं
परेशान होती हूँ पर जाहिर नही होने देती हूँ
पर फिर भी आपका परिधान पहन
खुश हो लेती हूँ अब भी
आपको याद कर आंसुओ से रो लेती हूँ
पर किसी को अहसास नही होने देती हूँ
कढोर सी बन काम करती हूँ
अपने सभी कर्तव्य पूर्ण करती हूँ
परेशान होती हूँ पर जाहिर नही होने देती हूँ
पर फिर भी आपका परिधान पहन
खुश हो लेती हूँ अब भी
थकती हूं परेशान भी बहुत होती हूं
पर जाहिर कभी भी नही करती हूँ
परिवार के लिए हर पल खड़ी हूं
मजबूत चट्टान सी परिवार के लिए हूं
पर फिर भी आपका परिधान पहन
खुश हो लेती हूँ अब भी
अपने सारे फर्ज आज भी निभाती हूँ
न जाने क्यो भाव विहीन सी हो गई हूं
बेटी हूँ ना शायद इसीलिए सबके लिए हूँ
कर्तव्य की अग्नि में सुलगती हूँ
पर फिर भी आपका परिधान पहन
खुश हो लेती हूँ अब भी
सबके साथ हूँ पर अपने से दूर हो गई हूँ
क्यो अपना स्वाभिमान से खो रही हूँ
परिवार को समर्पित रही हूँ फिर न जाने क्यो
खुद से ही खुद को दूर पाती हूँ
पर फिर भी आपका परिधान पहन
खुश हो लेती हूँ अब भी
डॉ मंजु सैनी
गाज़ियाबाद