आने वाली पीढ़ी
ना बीते से सबक कोई, ना चिंतां है कल दी,
आने वाली पीढ़ी देखियो की कुछ है झल दी।
विरसे ली रोते हैं जो, वह संभालन आज को,
टाल लैन अनहोनी जेकर अभी वी है टल दी।
बदल जाने शहर और रहने ना यह गांव भी,
मिलनी ना यह पवन जो पुरवाई सी चल दी।
सांभे ना गए अगर यह तलाब और यह झरने,
औखी होऊ सभालनी कल को बूंद-बूंद जल दी।
लगाते हैं आग और डालते है रेह एवं सपरेआं,
कर देनी है यह मिटृटी ज्यो रेत मारूथल दी।
की बनेगा भविष्य यारो काट के पेड़, पहाड़ों को,
बिन मां के देखना औलाद कैसे-कैसे है पल दी I