आनंद नंद के घर छाये।
आनंद नंद के घर छाये
मथुरा की कारा में उस दिन वसुदेव देवकी जागे थे,
बलि सात सुतों की देकर भी चिंता में पड़े अभागे थे,
अष्टमी कृष्ण भाद्रपद की, थी रात प्रसव की पीर उठी,
तंद्रा में प्रहरी सुप्त हुए, बंधन छूटे, सांकल टूटी,
दो प्रहर रात्रि जब बीत गयी, सुत कृष्ण देवकी ने जाये।
संकेत समझ वसुदेव त्वरित सुत को लेकर गोकुल धाए।
पहुॅंचा कर गोकुल कान्हा को, नवजात योगमाया लाये।
किलकारी से तंद्रा टूटी, संदेश लिये सैनिक धाए।
वध किया कंस ने कन्या का, अंबर से गर्जन नाद हुआ।
तेरा विनाश करने वाला, जन्मा, सुनकर भयभीत हुआ।
नंदलाल यशोदा के घर में कान्हा बालक बनकर आये,
आनंद नंद के घर छाये, बृज में नर नारी हर्षाये।
जब हानि धर्म की होती है, तब प्रभु अवतारित होते हैं।
वह विप्र धेनु सुर संतों की दुष्टों से रक्षा करते हैं।
कान्हा ने आते ही बृज में, तब दूर कर दिया भय सारा,
पूतना वकासुर को मारा, कालिया नाग को भी तारा,
ग्वालिन का माखन चुरा चुरा, नित ग्वाल बाल के साथ चखा,
मुरली की बृज में तान छिड़ी, राधारानी सॅंग रास रचा,
संदेश प्रेम के कान्हा ने निज लीलाओं में दर्शाये।
आनंद नंद के घर छाये, बृज में नर नारी हर्षाये।
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद।