आनंदी दाई मां
ठकुराइन को पहला बच्चा होना था, घर में बहुत ही ख्याल रखा जा रहा था। दिन पूरे हो गए थे, उस समय जचकी (डिलीवरी) घर में ही हुआ करती थी। गांव की गुड़िया दाई को रात विरात के लिए सावधान कर दिया गया था। आखिर वह दिन आ ही गया, रात को भोजन करने के बाद ठकुराइन को दर्द शुरू हो गए। आनन-फानन में दाई मां को बुला लिया, दाई ने अपनी तैयारियां शुरू की, एवं पूरे मनोयोग से अपने काम में लगी हुई थी। पीड़ा बहुत हो रही थी, सुबह के 4:00 बज रहे थे अभी तक जचकी न हो पाई थी। दाई घबराई हुई बाहर आई, ठाकुर साहब जल्दी से पास के गांव में जो आनंदी दाई है जल्दी लेकर आओ मामला मेरे बस में नहीं लग रहा, वे अच्छी जानकार हैं तुरंत घोड़ा गाड़ी गई, घंटे भर में ही आनंदी दाई उपस्थित हो गई, अपने ज्ञान अनुभव से शीघ्र सफलता मिली, खुशी से बाहर आई, सबको बेटा होने की खबर सुनाई, साथ ही बताया कि भगवान की कृपा से जच्चा बच्चा दोनों की जान बच गई, बच्चा उल्टा था। आप सभी को बधाई हो। खूब खुशियां मनी सब को इनाम इत्यादि दिया गया।
उक्त घटना को 22 वर्ष बीत गए थे, उस समय जन्मा बेटा जवान हो गया था। गांव में राधा कृष्ण मंदिर में जन्माष्टमी महोत्सव मनाया जा रहा था। झांकी लगी हुई थी सभी ग्रामवासी दर्शन करने आ रहे थे भजन कीर्तन के साथ आनंद उत्सव में सभी मगन थे। ठाकुर साहब का बेटा भी वहीं कुर्सी डालकर मित्रों के साथ बैठा हुआ था, तभी वहां से गुलिया दाई एवं आनंदी का दर्शन करने आना हुआ, वे दोनों अपनी मर्यादा में ही चल रही थीं, की ठाकुर के बेटे ने रोबदार आबाज में टोका अरे अरे दूर से निकलो, तुम्हें छुआछूत का जरा सा भी ख्याल नहीं? तुम लोग अपनी औकात भी भूल गई क्या? वे ठिठक कर रुक गईं, हृदय में शब्द तीर जैंसे चुभ गए। आनंदी ने गुड़िया से पूछा कौन है यह? अरे आनंदी यह वही ठाकुर साहब का छोकरा है जिसे, तुमने इसकी मां और इसको मरने से बचाया था। क्या ये बही छोकरा है? अब तो आनंदी से रहा नहीं गया, बेटा तुम आज छुआछूत की बात कर रहे हो? अपनी मां से मेरा परिचय पूछ लेना की आनंदी दाई कौंन है? मैंने ही तुम्हारे गले में हाथ डालकर तुम्हरा टैंटुआ बनाया था, तुम्हारी मां को मौत के मुंह से निकाला था, उस समय हम अपनी औकात भूल गए होते तो आज तुम ऐसे अपशब्द कहने यहां नहीं बैठे होते? ठकुराइन के बेटे को अपने जन्म की सारी कहानी याद आ गई जो घटना मां ने सुनाई थी। वह शर्मिंदा होकर नतमस्तक हो गया। दाई मां गलती हो गई मुझे क्षमा कर दो,आप मेरी और मां की प्राण दाता हैं, मेरी आंखें खुल गई, मैं अब कभी भी छुआछूत की बात नहीं करूंगा।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी