#आध्यात्मिक_कविता
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■ हम परमतत्व के दिव्य-शोध
【प्रणय प्रभात】
हम तब भी थे, जब कोई न था,
हम अब भी हैं, जब सारे हैं।
हम बर्षा ऋतु के ताल नहीं,
अविरल निर्झर के धारे हैं।।
यह सिद्ध किया है सिद्धों ने,
ये कथा महाग्रंथों ने कही।
अस्तित्व हमारा हर युग मे,
स्थूल नहीं तो सूक्ष्म सही।।
अक्षर अतीत के पृष्ठों के,
हम वर्तमान का शब्दबोध।
हम आगत के हैं केंद्र-बिंदु,
उस परमतत्व के दिव्य शोध।।
उजियारा बन कर आएंगे,
नत-मस्तक सारे तम होंगे।
है ज्ञात हमे अपना भविष्य,
जब कोई न होगा हम होंगे।।
हम परम-चिरंतन अंतहीन,
हर युग में नवयुग। के वाहक।
हम संहारक दानवता के,
हम मानवता के संवाहक।
इस पुण्यधरा से है लगाव,
अम्बर से भू पर आएंगे।
उपहार रूप में जगती को,
नव अमर-कथा दे जाएंगे।।
■प्रणय प्रभात■
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)