आधे अधूरे सवाल
ज़िन्दगी क्या है? कभी सोचा है तुमने?
मैंने? हाँ, मैंने तो सोचा है।
मुझे तो आधे-अधूरे सवालों की कहानी लगती है।
एक उलझी हुई सी बे-हद अज़ीब कहानी
जिसके हर सवाल के बाद एक और सवाल होता है
एक और आधा-अधूरा सा मुश्किल सवाल।
नाजाने किसकी मदद लेती है ज़िन्दगी
ऐसे सवाल कहाँ से लाती है ज़िन्दगी,
हर बार एक नया सवाल पूछ ही लेती है ज़िन्दगी।
वक़्त गुज़रता रहता है हम बदलते रहते हैं
पर तब भी सवाल रहते हैं।
ऐसा नहीं कि लोग जवाब नहीं देते,
देते हैं, मगर ज़िन्दगी को फ़र्क़ ही नहीं पड़ता
उसे तो बस अपनी कहानी की पड़ी रहती है
वही उलझी हुई सी बे-हद अज़ीब कहानी।
अलमस्त ज़िन्दगी बिना थके पूछती ही रहती है
आधे-अधूरे से बे-अंत से मुश्किल सवाल।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’