*आधुनिक सॉनेट का अनुपम संग्रह है ‘एक समंदर गहरा भीतर’*
आधुनिक सॉनेट का अनुपम संग्रह है ‘एक समंदर गहरा भीतर’
बिमल तिवारी “आत्मबोध”।अंग्रेज़ी और फ्रेंच साहित्य को पढ़ते समय मैं सॉनेट रूप में कई गीत, कविताओं को पढ़ा। जो नाटक के साथ साथ प्रेम , सौंदर्य आधारित थी। तब मुझें यही पता था कि सॉनेट बस पश्चिमी साहित्य में ही लिखा गया है।और लिखा जा सकता है। बाद में मुझे कुछ हिंदी के कवियों के द्वारा लिखे गए सॉनेट रूप में उनकी रचनाओं को पढ़ने का मौका मिला। जो मुझे बेहद प्रिय लगी।
सॉनेट रूप में लिखना सच पूछिए तो मुझे थोड़ा कठिन लगता है। सॉनेट चार पंक्तियों में लिखी जाती है। जिसमें पहली और चौथी एक तुक पर, दूसरी और तीसरी एक तुक पर। कुल चौदह पंक्तियों में अपनी बात कह देना होता है। वास्तव में सॉनेट रूप में काव्य लिखना बहुत कठिन है। तभी सॉनेट रूप में काव्य हिंदी साहित्य में बहुत कम मिलते है। इसे लिखने वाले कवि भी बहुत कम है। कम से कम आधुनिक समय मे तो बहुत कम। इस रूप में कविता बहुत सधा और परिपक्व कवि ही लिख सकता है।
सौभाग्य से मुझें वेद मित्र शुक्ल द्वारा लिखा और एकेडमी पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित ‘एक समंदर गहरा भीतर’ पढ़ने को मिला। जो सॉनेट रूप में लिखी गयी कविताओं का एक अनुपम संग्रह है। अनुपम इसलिए मैं बोलूंगा की सॉनेट रूप में आधुनिक हिंदी साहित्य में लिखा यह सॉनेट संग्रह है। जो सॉनेट के हर नियम को फॉलो करता है। अब तक मैं जो भी सॉनेट रूप में काव्य पढ़ा हुँ। ओ ज्यादातर प्रेम, सौंदर्य पर ही आधारित है। मग़र वेद मित्र शुक्ल का लिखा यह ऐसा सॉनेट संग्रह है, जिसमे गाँव, गली, देहात, मौसम ,धरती , पर्यावरण, राजनीति आदि लिखा गया है।
वेद मित्र शुक्ल दिल्ली यूनिवर्सिटी में अंग्रेज़ी के अध्यापक है। अंग्रेज़ी उनकी पकड़ वाली भाषा है। मगर इस सॉनेट संग्रह को पढ़ते हुए ऐसा लगा ही नहीं कि मैं किसी अंग्रेज़ी के प्रोफेसर का लिखा हुआ काव्य संग्रह पढ़ रहा हु। बदरा, ठाना, अनचीन्ही, मितवा, आँखिन जैसे देशज शब्दों का आना वेद मित्र शुक्ल को गांव घर से जुड़े होने का एहसास कराता है। इस सॉनेट संग्रह को पढ़ते हुए लगता है कि वेद मित्र शुक्ल में भारत बसता है। जो गांव के साथ किसान, मजदूर, खेत- खलिहान की यात्रा कराता है।
संग्रह का पहला सॉनेट ‘आदम मतवाला’ पढ़ने से पता चलता है कि ईश्वर द्वारा सज़ा देने के बाद भी आदमी अभी भी सुधरा नही है,
उस इक के कानून तोड़ता अब भी आदम ।
कबीर, फ़कीरा, राम नाम, मृत्यु नींव है, ओम शांति, कर्मयोग जैसे सॉनेट में कवि की गहरी दार्शनिक छिपी भाव प्रकट होती है। जीवन तो नदिया की धारा झर झर बहती/मौत किनारों सी होकर, है बांधे रहती। मृगतृष्णा रग रग में अपनें पाव पसारे/ अंतिम लाइन ,जैसे कोई नचिकेता फिर आज खड़ा है।
परीक्षा के बोझ से दबे विद्यार्थियों के लिए परीक्षा सॉनेट पढ़ने नही रटने योग्य है।जिसमे कवि कहते है की, होती है हर सांस परिक्षा ऐसा मानो/मग़र सहज होकर ही यारा जीना जानो। सफल असफल होना बड़ी बात नही। सहज होना सफलता की बात है।
सूरज से मिलना है तो मेरे गाँव चलो/ क्या बसंत फिर लौटेगा/ चहचहा उठें चिड़िया यो गाते, सॉनेट में जैसे कवि ने पूरा गांव का खाका आँखों के सामने खींच दिया हैं। बस धूल-धुआँ औ शोर-भीड़ से बने शहर/ शहरीपन का शगल पालना है मजबूरी / पथराए अरमानों के इस महानगर में, शहरों की दशा और ज़िंदगी को समझने के लिए जैसे कोई फ़िल्म है।
मजदूर, एक मई, धड़कन धड़कन हार रहीं मजदूरों पर कही गईं मानस जैसी चौपाई है। ‘थी भोर गई दिन भी गुजरा रौनक पसरी, पर कौन सुने मजदूरों की दुनियां बहरी’ मजदूर के साथ गरीब वंचित वर्ग के लिए जैसे नारा लगती है। अब नफ़ा नहीं है गला काटते हाट सजे, में बड़ी ही सहजता के साथ कवि ने अमीरी गरीबी के अंतर को कह दिया है।
सहजता जैसे वेद मित्र शुक्ल की प्रकृति है। बड़ी से बड़ी समस्याओं को जिसका समाधान आज के भौतिक युग मे बहुत मुश्किल है। वेद मित्र शुक्ल ने अपनी सहजता से उसका अपनें काव्य में समाधान कर दिया है। ख़ुद को मानो शाह दूसरों को कहते ठग / शोर शराबा भीड़ भाड़ सब ले डूबेगा/ छोड़ो बेमतलब के दुनियावी गुना भाग/ हो निरा अकेला है जीना मरना, में कवि ने आज के समय मे कठिन होती जा रही ज़िंदगी का जैसे स्थाई समाधान दिया हो।
सत्ता के ख़िलाफ़ बोलना अब कठिन हो गया है।क्योंकि हर लेखन,कवि सत्ता के पक्ष में लिखकर गाकर सुख पद लेना चाहता है। तब कवि का कहना कि, कविता है बोकर तो देखों / दीमक है जो देश के लिए उनसे बच ले/ उनके आगे पत्रकार सब नपे हुए है ,निर्भीकता को बताता है।
आज के राजनीति पर बोलना बहुत कठिन हो गया है। मग़र जो बोले, कम से कम सत्य बताये, ओ ही असली क़लमकार है। मैं तो यही मानता हूं। इस लिहाज से भी इस सॉनेट संग्रह में कवि ने
कुर्सी जो भी हैं आम आदमी के बल पर /स्वेद बिंदु माथे से झरते सोना बन से बड़ी बेबाकी से आज की राजनीति पर काव्यात्मक टिप्पणी की है। उम्मीदों के बीज नही बोना छोड़े से कवि ने आम आदमी को जगाया है।
वेद मित्र शुक्ल के इस सॉनेट संग्रह में 126 सॉनेट है। जो मानस की चौपाई जैसे रोज पढ़ने वाले है। एक भी सॉनेट ऐसा नही है, जिसे हम बिना मन का पढ़े। या बस देख के छोड़ दे। अंतिम सॉनेट की अंतिम लाइन दो लाइन , ‘तितली गुलशन या इन्सां सबका ही जग है’ भारतीय दर्शन वसुधैव कुटुम्बकम की बात दोहराता है और मानव को अन्य जीवों के प्रति सजग करता है।
“कृष्ण नहीं जो कुरुक्षेत्र में गीता गाये
अर्जुन जैसा नायक बनना भी मुश्किल है
बन भी जाये तो आखिर में क्या हासिल है
आम आदमी कैसे अपना धर्म निभाये”, जैसी पंक्ति पढ़कर आधुनिक गीता जैसा लगता है। और इस सॉनेट संग्रह को सहेज कर अपने आलमारी में रखने को कहता है। पुस्तक प्रेमियों, किताब के शौकीन मित्रों, साहित्य और काव्य के लिए जगे चेतनाओं को ऐसी अनुपम काव्य संग्रह एकबार अवश्य पढ़नी चाहिए, जो सॉनेट रूप में वेद मित्र शुक्ल के द्वारा लिखी गयी है।