आधुनिक टंट्या कहूं या आधुनिक बिरसा कहूं,
क्रांतिकारी युवा महेंद्र सिंह कन्नौज को समर्पित:
आधुनिक टंट्या कहूं या आधुनिक बिरसा कहूं, तुझे कम पड़ेगा। मुझे विश्वास है मेरे भाई, तु मरते दम तक आदिवासी समाज के लिए लड़ेगा।।
तेरे बेतहासा जुनून से आंधियां अपना रास्ता मोड़ लेती है,
मध्यप्रदेश की नदियां तेरे साहस पर कल-कल के गीत जोड़ लेती है।
बवंडर साथ चलते है, तूफान तुझसे मिलने को तरसते हैं।
तेरे दिल में आदिवासी समाज के गरीबों के दर्द बसते है,
तेरी आवाज बब्बरशेर की दहाड़ है, बाहुबली तू अकेला खड़ा हो जाए तो मजबूत चट्टान व पूरा पहाड़ है।।
एक बात मुझे बेहद सच्ची लगती है, मां प्रकृति की कसम तेरी हर मुस्कुराहट मुझे अच्छी लगती है। सुनो! एक बात और दिल में घर करती है, तेरी हर “कुर्रराटी” मुझे अच्छी लगती है।।
आदिवासी समाज का इतिहास जब जब लिखा जाएगा, क्रांतिसूर्य धरती आबा भगवान बिरसा, महाविद्रोही राष्ट्रपिता टंटया भील के साथ आपको भी स्वर्ण अक्षरों में पढ़ा जाएगा ।।
जब किसी मां बहन बेटी पर अत्याचार होता है, पुरा समाज खून के आंसू रोता है।
ऐसी हालत में आप बेबाक फाचरा फाड़ आवाज बुलंद करते हैं, प्रशासन में बैठे लोग आपके नाम से डरते हैं।।
प्रकृति पुत्र महेन्द्र भाई कन्नौज आप तो आप हो, आपका रुबाब क्या। आप तो लाजवाब है आपका जवाब क्या।।
आधुनिक टंट्या कहूं या आधुनिक बिरसा कहूं, तुझे कम पड़ेगा। मुझे विश्वास है, तु मरते दम तक आदिवासी समाज के लिए लड़ेगा।
:राकेश देवड़े बिरसावादी