आदमी
इंसां से वहशी बन गया है आदमी ,
मज़लूमों पर ज़ुल्म ढाता है आदमी ,
झांककर अपने गिरेबाँ में न देखता ,
औरौं में ख़ामियांँ ढूंढता रहता है आदमी ,
इस क़दर न गिर के शर्म़सार हो ,
ख़ुद अपनी नज़रों से गिरकर तू आदमी ,
भाई से भाई दुश्मन बना ब़दगुम़ा हुआ , फिरता है आदमी ,
वक्त की गर्दिश से मजबूर हुआ , हिम्मत हारता है आदमी ,
ख्व़ाहिशों के दलदल में फंसकर खुदगर्ज़ हुआ ,
अज़ीज़ों से रिश्ते तोड़ता है आदमी ,
नस़ीहत देने से ग़ुरेज़ करो , मस़लहतों को बुरा मानता है आदमी ,