आदमी
पिसते’ पिसते आज बौना हो गया है आदमी ।
मातमी ख़त का सा’ कौना हो गया है आदमी ।।1
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जिन्दगी पर इन्द्रधनुषी तन गई है वासना ।
देखिये कितना घिनौना हो गया है आदमी ।।2
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रेजगारी से भुने व्यवहार हैं इंसान के ।
घटघटा कर नोट पौना हो गया है आदमी ।।3
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रेशमी कालीन तो शोकेस में सज कर रखे ।
चीथड़ा कोई बिछौना हो गया है आदमी ।।4
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ये पढ़ा भूगोल में था सारी’ दुनियाँ गोल है ।
पर मुझे लगता तिकौना हो गया है आदमी ।।5
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हाथ माथे पर टिकाये है कहीं कौने पड़ा ।
एक टूटा सा खिलौना हो गया है आदमी ।।6
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-महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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