आदमी हो तो आदमी मानूँ
2122 + 1212 + 22
मैं तो हिन्दू न मुसलमां जानूँ
आदमी हो तो आदमी मानूँ
बैर जग में किसी से रखना क्यों
कोई भी रार ना जी में ठानूँ
वो है ज्ञानी जो समझे उल्फ़त को
प्रीत के ढाई लफ़्ज़ मैं मानूँ
लड़ते भी हैं वो प्रेम भी करते
राम रहिमान दोउ को जानूँ
अपने हैं सब, न कोई बेगाना
तुम खुदा कहते, राम मैं मानूँ