आदमी हूँ..
मैंने,
मृत्यु के,
दरवाजे पर भी,
आवाज दी है,
जिंदगी को!
मैंने,
हार में,
तलाशी हैंं,
जीत की,
अनंत संभावनाएँ!
मैंने,
दम लिया है,
दर्द को,
दवा बनाकर!
मैंने,
क्षितिज पर,
स्वर्णाक्षरों में,
लिखा है अपना नाम,
कई बार,
मैंने,
झुकाये हैं,
कई हिमालय,
अपने कदमों में!
मैंने,
भरी हैं उड़ानें,
गगन के,
उस छोर तक,
बिना परों के!
मैं इसलिए ही,
ईश्वर की,
सर्वश्रेष्ठ कृति हूँ।
हाँ,
मैं आदमी हूँ।।
प्रदीप कुमार