आदमी था मगर देवता हो गया
((( ग़ज़ल )))
मैं जिसे उम्र भर चाहता रह गया
कह न पाया यही इक खता रह गया//१
कब्र पर लोग चादर चढ़ाते रहे,
एक भिक्षुक वहीं काँपता रह गया//२
लोग बन्दर को पूआ खिलाए बहुत,
एक भूखा वहीं ताकता रहा गया//३
प्यार मेरा कोई व्याह कर ले चला,
हाय रब से जिसे माँगता रह गया//४
भूल पाया नहीं उम्र भर मैं जिसे,
गैर मुझको वही मानता रह गया//५
खो गई नींद नैनों से उसकी कहाँ,
रात-भर ‘सूर्य’ क्यों जागता रह गया//६
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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