आदमी कितना नादान है
आदमी स्वयं ही बुरा है,
दूसरो को बुरा बताता है।
वह अपने स्वार्थ के लिए,
दूसरो को खूब सताता है।।
आदमी कितना नादान है,
मंदिर में शंख घंटा बजाता है।
सोया हुआ वह स्वयं है,
भगवान को जाकर जगाता है।।
आदमी स्वयं कितना भूखा है,
रोज भगवान से मांगने जाता है।
स्वयं को माया की भूख लगी है,
भगवान को भोग लगाने जाता है।
आदमी कितना मूर्ख है,
स्वयं को ज्ञानवान बताता है।
पर मंदिर में जाकर वही,
रोज दीपक जलाने जाता है।।
अगर आदमी सोच बदल दे,
वह नेक इंसान बन जायेगा।
झूठे आडंबरो से बचकर ही,
वह सच्चे पथ पर जायेगा।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम