आदमी आदमी का दुश्मन
*** आदमी आदमी का दुश्मन (गजल) ***
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आदमी आदमी की जान का दुश्मन हो गया,
जो प्रेम से भरा था खोखला बर्तन हो गया।
अब मानवीय मूल्यों का वजन उठाता नहीं,
वो नीर सा निश्छल धुंधला दर्पण हो गया।
मानव दबा हुआ बोझिल यहाँ खड़ा आज है,
लालच भरी लतों का खूब सा अर्जन हो गया।
रहता रहे सदा खुद की नजर झुका घूरता,
हर रोज डूबते से सूर्य सा दर्शन हो गया।
सदा गमगीन मनसीरत फसा रहे राह में,
नूतन नवी नवेली सोच का तर्जन हो गया।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)