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24 Nov 2022 · 5 min read

आत्म बोध की आत्मा महात्मा

1-आत्म बोध की आत्मा का महात्मॉ-

द्वेष, दंभ, घृणा न युद्ध की दे दी एक नई परिभाषा हिंसा, हत्या, घॉव
छल छदम प्रपन्च नही मानव को मानवता से प्रेरित बता दिया एक
नयी सभ्यता ।।

गीता का भी है कहना हिंसा, हिंसक नही प्रवृत्ति मानव मानवता की
यह तो पशुवत व्यवहार ।।

गांधी, बुद्ध,महाबीर मे,है र्सिफ अन्तर इतना बुद्ध महाबीर काअंहिसा धर्म मार्ग मानवता के शान्ति सन्मार्ग
मोक्ष की राह ।।

गांधी ने अंहिसा को कर्म-धर्म के
मध्य सिद्धान्त सेतु जीवन मूल्य बनाया।।

परमार्थ, पुरूषार्थ, पराक्रम
के लिये अंहिसा को अनिवार्य हथिहार बनाया ।।

नही यह दया भाव कृतार्थ या कृतज्ञ भाव अंहिसा तो परिभाषित करता परम पराक्रम कालजयी जन्मेजय का अपराजय विजयी भाव ।।

अस्मत अस्ति, अस्तित्व मानव मूल्यों मानवता युग में गांधी और महात्मा का
अंहिसा ही सिद्धान्त यार्थाथ ।।

आत्मा गांधी की है कहती मेरे आने-जाने के दिन ही युग को
याद है आते ।।

मैने जिया युग को जिन मूल्यों की खातिर हर घडी भुलाये जाते ।।

भ्रष्टाचार अन्याय से त्रस्त जन-जन
बच्चा भविष्य राष्ट्र का, कुपोषण का शिकारकिसान है शोषित करता आत्मदाह हो बेहाल ।।

रोज मारी जाती है बेटियां
नारी अपनी अस्मत की करे पुकार ।।

युवा शिक्षा रोजी रोजगार को खोजता
व्यवसायी को सुरक्षित आशियाने
की दरकार।।

दलित दासता में जीता खोजता जीवन
की मुस्कान।।

कभी ठीठुरती ठंड से मरता,वर्षा और तुफानों में बहता तपती दोपहरी में तोडता पत्थर लंू से मरता ।।

देखो इस नये समाज को जहां दहेज दानव है हावी ।।
धर्म शास्त्र बतलाते इन्सानों को
मरने के बाद जलाते ।।
अब तो बेटियां दानव दहेज की ज्वाला मे हर रोज जलायी जाती है ।।

देखो आज की राजनिति को नेता निति नियन्ता को गांधी की मर्यादा की कसमें खाते गांॅधीवादी का स्वांग रचाते ।।

भरे बाजार में मुझे ही नंगा रोज नचाते
राजनीति मंे सभी है कहते,गांधी को अपना आदर्श और पूर्वज फिर भी मेरे ही आदर्शो को रोज कफन नया ओढतें।।

बना दिया है लेागो ने मेरे आर्दशों मूल्यो को पत्थर मीटा दिया है खुद की आत्मा से भाव भावना ।।

भूल गये सब अपना कर्तव्य धर्म प्रेम दया करूणा मानव मानवता का सिद्धान्त।।

यदि मानव जानो तो हर बच्चा, वृद्ध, पौढ, नौजवान हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब में गांधी कठीन कार्य है गांधी मूल्यों आर्दशों को जीना ।।

तभी पूछता है आज भारत का जन-जन क्या आज भी गांधी है सत्य क्या है इस भौतिकवादी भागते दौडते युग में गंाधी की प्रसंगिता ।।

कहते है गांधी सूनो आज के दुनिया वालो नही जरूरी तुम मुझको मेरे आर्दशों को मानो ।।

पहन खादी का कुर्ता गंाधी टोपी गंाधी का अनुयायी बन गांधी के आर्दशों की नयी नयी परिभाषा देते दुनिया को नित नयीटोपी पहनाते ।।

गांधी का सिद्धान्तबताता सर्व धर्म सम्भाव का नाता सब हैं भाई भाई
आज वक्त बदल गया है।

रक्त रंग का अलग अलग नही रहा अब कोई भाई बने हुये सब एक दूजे की खातिर अपने मतलब के कसाई ।।

गंाधी कहते देख रहा हूं हर शहर मोहल्ले गली नुक्कड चौराहों पर हर मौसम हर भावों पे बन पत्थर की मूरत नही दिखता हू भारत के समाज में भारत के इन्सानों में ।।

जानो खुद को पहचानो
खुद को जान पहचान गए यदि
तो मिट जायेगंे संदेह सभी ।।

जाग उठेगी आत्मा मिल जायेगा जीवन कोअलोकित पथ ।।

तब तुम जानोगे देश राष्ट्र समाज आर्दशों को चाहे जहां भी जाओगेे देखोगे तुम गंाधी को प्रत्यक्ष और संग हर लम्हो में ।।

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश

2-सत्यार्थ का प्रकाश गांधी

अंह नही हिंसा नही
साहस, शक्ति, शौर्य
पुरूषार्थ पराक्रम की
भाषा और परिभाषा है।।

झुकना नही टूटना नही
अन्तर मन की मजबूती से
निकली निखरी उत्कर्ष उर्जा से
उपजी विजय मार्ग की आभा और अस्तित्व ।।

कायर कायरता नहीअस्त्र शस्त्र सौम्यता क्षमा शीलता दया प्रेम परमार्थ
द्वेष दंभ को तोडता त्याग तपस्या बलिदान ।।

खडा अगर हो सामने काल लिए समग्र हथियार विफर बिखर जाता है
वह भीसारी शक्ति हो जाती
उसकी बेकार ।।

हिंसा में अस्तितव र्सिफ मानव मानवता की चित्कार व्यथित शिथिल
मानवता का संसार ।।

पीछे हटना पीठ दिखाना नहीं सीखता नहीं बतातागांधी अहिंसा का सिद्धान्त।।

अहिंसा अर्न्तमन की साहस एक ज्वाला हैचल पडता जो इस सिद्धान्त पथ परपथिक वह निराला है ।।

राहो में र्सिफ है मिलती पीडा घावों का उपहारअस्त्र शहस्त्र यही बन जाते
इन्हीं अस्त्रो के धारो से
शत्रु जाता हार ।।

मिट जाना या मिटा देनाकी भाव भावनाको अहिंसा करती है प्रतिकार ।।

हिंसा और अहिंसा मेंफर्क र्सिफ इतना
कारक कारणको कर समाप्त
हिंसा का विजय मार्ग ।।

कारण का करे अंतपरिमारजित करता कारक कोफैलाये जो नया उजाले का परिवेशअडिग धैर्य धार आगे ही बढते रहना जिसकी शान ।।

चटटाने पिघल जातीबदल देते रास्ते सैलाब तुफानसैतान संत सा हो जाता
सिंह श्वान, भुजंग, गाय सब बैठते एकात्म भाव से सबका हित
सबका कल्याण ।।

र्निभीक निडर निस्कंटक निश्चय
र्निधारित विजय पथ की आभा अस्तितत्व आस्था विश्वास
कर्म धर्म धैर्य धरोहर ।।

दीन हीन का त्याग तिरस्कार
अविचलित लक्ष्य साध्य साधना अस्त्र शस्त्र नहीं रागद्वेष नहीं हौसला हिम्मत शौर्य सिद्धान्त ।।

गांधी से बना महात्मा का जीवन
व्रत अपरिहार्यडर नहीं दंभ नहीं
आत्म आत्मीय बोध भय नहंी भयाक्रान्त नहीं नहीं अपराध बोध ।।

शीतल मृदु व्यवहारिकता ज्वाला उर्जा की सार्थक सार्थकता कायर नही, कु,िटल नहीं, कुपित नहंी
उद्देश्य मानव मानवता
के कल्याण की सार भौमिकता ।।

आचार व्यवहार आचरण नियमित निष्ठा नीति नियति में राष्ट्र युग अवधारणा का निर्माण ।।

कटु कटुता नही शत्रु शत्रुता नहीं
प्रेम सन्देश में ही मानव समाज
की व्याख्या व्यवहार ।।

रक्त नही कलंक नहीजय पराजय नही
यह तो परिभाषा मानव के स्वतंत्रता मूल्यों मर्यादा की व्याख्या ।।

सम भाव सम्मान जीव जीवन सब एक समान सबके सुख दुख भी एक समान ।।

सबकी आवश्यकता स्वतंत्रता एक समान मूल रहस्य जीवआत्मा शासन

सत्ता की नीति रीत राजनीति
की दायित्व बोध और ज्ञान ।।

कायर नही कल्पित नही
भीषण नही विभिष् विभिषिका नही
फिर भी काल कराल ।।

तूफानो को मोड देताआग को शीतल कर देता विपरीत धराओं को भी साथ साथ चलने को विवश करता

पर्वत के कठोर चट्टान भीपीछे हट मंजिल को जाने का मार्ग प्रशस्थ कर देता ।।

काल खडा भी समाने बोलता तू तो मुसाफिर अहिंसा का मेरी निष्ठा और इरादों का जाओ तुम दिग्विजयी हो।।

आत्मा तुम महात्मा हो गंाधी युग कहता है तुम्हें तुम मानव मानवता के प्रहरी सिद्धान्त मूल्यों के र्निमाता
नही तुम मुझमें तुम मेरे व्याख्याता ।।

मान अपमान तिरस्कार
से नही आहत हर घडी पल प्रहर मजबूत इरादो से बढते जाओ
बन मानवता युग के पालक संचालक।।।

नन्द लाल मणि (पीताम्बर)

गोरखपुर (उ0प्र0)

मो. 9889621993

Language: Hindi
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