आत्म नियंत्रण
डॉ अरुण कुमार शास्त्री , एक अबोध बालक : अरुण अतृप्त
यादों ने सुर छेड़ दिया पवन चली पुरवाई
भूली बिसरी शामें लेकर फिर से बरखा आई ।।
मैंने मन से कितना बोला चलो चलेगे बाहर
मन ने मेरी एक न मानी कोरोना के कारण।।
दिल दुखता है सोच सोच कर बीते दिन की याद
तुमसे मिलना आना जाना गुलदस्तों के साथ ।।
मन को हमने ढाढस देकर अबकी बार संभाला
उम्र को अपनी साध लिया है चिंतन करने वाला ।।
आशाओं का साथ रहा तो मौसम फिर आएगा
हम तुम नाचें और गाएंगे, तुम मस्ती फैलाना ।।
फूलों के संग होली खेलेंगे रंगों के संग फाग
दीप जलाकर हम तुम दोनों खूब करेंगे प्रकाश ।।
तेरी मेरी देखा देखी जाग उठेंगें लोग
परिवर्तन की हवा चलेगी होगा ये संजोग ।।
आत्म नियंत्रण से ये सब होगा, देना होगा साथ
मिल कर साथ चलेंगे जब सब, आओ मिलाएं हाँथ ।।
यादों ने सुर छेड़ दिया पवन चली पुरवाई
भूली बिसरी शामें लेकर फिर से बरखा आई ।।
आशाओं का साथ रहा तो मौसम फिर आएगा
हम तुम नाचें और गाएंगे, तुम मस्ती फैलाना ।।