आत्म आलोचना
अपनी कमी देखना
आसान नही है ।
व्यवहार में इसका
प्रचार नही है।
पूर्वाग्रह नही हो
हो दृष्टि ईमानदार।
हर रात समीक्षा करो
है इसकी ही दरकार।
दूसरा अपने को जान
मन की निष्पक्ष करे।
दृष्टि को स्वछ बना
अपना समालोचन करें।
तभी अपनी कमियों को
हम पकड़ पाएंगे।
तथा कोई सुधार
अपने मे ला पाएंगे।
जीवन का लक्ष्य निरंतर
अपनी उन्नति करना है।
अपने मे इसी तरह
हमे सुधार करना है।।