आत्मा बिक रही है ज़मीर बिक रहा है
आत्मा बिक रही है ज़मीर बिक रहा है,
रईसों के बाजार में ग़रीब बिक रहा है !
किसान बिक रहा, जवान बिक रहा है,
पटवारी के हाथो से जरीब बिक रहा है !
हर तरफ घूम रहा भ्रष्टाचार का आतंक,
आततायी के शहर शरीफ़ बिक रहा है !
तिज़ारत हो गई मुहब्बत भी आजकल,
रक़ीब के बदले में रक़ीब बिक रहा है !
कितना भी हो बुरा दौर मगर याद रहे,
कर्म के हाथ सदा नसीब बिक रहा है !
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डी के निवातिया