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25 Sep 2021 · 1 min read

आत्मा को शांति नहीं है

आत्मा को शांति नहीं है।
यह आत्मा शहर की है।
जिन्दा आत्मा गयी मर सी है।
कर रहा कितना शोर है यह।
दूषित आवाजों में विभोर है यह।
यह एक विकसित आत्मा थी।
अब संस्कृति का खात्मा थी।
भौतिकता का बढ़ना सभ्यता है।
संस्कृति में श्रद्धा होना भव्यता है।
आत्मा से छिन रही है आस्था,श्रद्धा।
इसलिए आत्मा खो रही मानवता।
संस्कृति इस आत्मा की असंस्कृत।
शांति आत्मा की अत: अचंभित।
आत्मा है यह बिल्कुल अशांत।
शहर की यह अत्यंत ही क्लांत।
हवा को कर लिया देखो इतना घना।
शहर की हो गयी आत्मा ज्यों फना।
जल निषिद्ध रसायनों का हुआ घोल।
आत्मा नहीं कर पाती सर में कल्लोल।
इस आत्मा पर हत्याओं का इल्जाम है।
जिन सपनों की हुई उसका इंतकाम है।
आत्मा को शांति नहीं है।
यह आत्मा शहर की है।
विभिन्नता पुष्प-गुच्छों की तरह एक।
एकता टुच्चों की तरह स्वार्थ रहा सेंक।
परिचय तो है किन्तु,अपरिचित हैं लोग।
चार न तीन होता है यहाँ दो,दो का योग।
प्रतिस्पर्द्धा यहाँ इर्ष्यालु है।
आत्मा धूर्त और चालू है।
रात में गर्म,दिन में ठंढा रहो आत्मा।
ताकि शान्ति प्रदान करें परमात्मा।
____________________________

Language: Hindi
169 Views
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