आत्महत्या के पहले
खुद से नहीं कभी मन हारा-
हर संकट में किया गुजारा।
तिल-तिल मरता मन है कहता-
जीवन न यह मिले दुबारा।।
मन में जब हो उथल-पुथल तो-
बादल सी इक उमड़-घुमड़ हो ।
साँसों को कुछ दबा रहा है-
जैसे कि कुछ इधर-उधर हो ।
घुटती जब जीवन आशाएं-
गिर जाता किस्मत का मारा।
तिल-तिल मरता………… ।।
मन जैसे हो कैद यहाँ पर-
भँवर बना सागर के अंदर ।
बाहर से स्थिर सम-समतल-
ज्वार बने नित व्यग्र बवंडर ।
बुरे वक्त पर ताक सभी का-
तिनके का भी नहीं सहारा।
तिल-तिल मरता …………।।
मरता आखिर क्या न करता-
जीवन-मृत्यु में किसको चुनता।
आशाओं का परम पुजारी-
अंदर का कोलाहल सुनता।
त्याग दिया सुनते-गुनते मनु-
आशाओं का जीवन सारा।
तिल-तिल मरता…………।।