आत्मशक्ति
आत्मशक्ति
पाना चाहता हूं मैं यह अनंत विस्तार
भटकूं क्यों बनाकर तृष्णाओं को आधार।
जानता हूं चाहती हो तुम घोंसला इक बहाना
परंतु मैं तो चाहता हूं, उड़ता रहूं उन्मुक्त समस्त आकाश।
नाम तुमने दिया इस ठहराव को प्रेम का
परंतु समय जितना शेष है, काफी नहीं इतना
कि कुछ क्षण रुक जाऊं, सिमट जाऊं
क्योंकि पाना चाहता हूं मैं यह सम्पूर्ण फैलाव।
संघर्ष मेरे अभी भी शेष हैं
आशा और विश्वास नहीं हुए अवशेष हैं
बंध जाऊं, बिताऊं अगर बिना मकसद यह जिंदगी
तो सोचा है अंत में क्या होगी मेरी परिणती।
मानव जीवन में जो निमित्त है
मेरा जीवन नहीं इतना सीमित है।
नाम चाहे तुम दो इसको विरक्ति
परंतु क्या रोक पाओगी मुझे पाने से आत्मशक्ति।
फिर भी चाहती हो यदि तुम मुझे पाना
कुछ दूर तुम मेरे साथ आना
छोड़ कर सभी क्षणभंगुर तृष्णाओं का साथ
इस जीवन मंथन में तुम देना मेरा साथ।