*आत्ममंथन*
यह कैसी वेदना है? –
ह्रदय के अंतर्तम में
प्रकृति के प्रहार से प्रभावित
संपूर्ण मानव समुदाय के लिए
एक अव्यक्त संवेदना है –
मत कह इसे प्रकृति की निष्ठुरता –
यह है कलयुग के पापों की पराकाष्ठा-
इस अस्थिरता और दुर्गति के लिए
हे मानव! तू ही है जिम्मेदार –
और तेरा प्रायश्चित ही है
इससे उभरने का एकमात्र उपचार –
जिस उथल-पुथल को तूने मचाया है
उसे तुझे ही पड़ेगा संभालना –
क्यों अपने कुकृत्यों के लिए देता है
सृष्टिकर्ता को उलाहना ? –
अभी भी यदि निःस्वार्थ भाव से
सद्प्रयास करेगा –
तो भविष्य के लिए
गौरवशाली इतिहास रचेगा –